अणुप्रणाली - History of Atom |
अध्यात्म संवाद - भाग १ |
अध्यात्म संवाद - भाग २ |
अध्यात्म संवाद - भाग ३ |
अध्यात्म संवाद - भाग ४ |
अनुभवामृत - डॉ. श्री. कमलताई वैद्य |
अमृतनाद उपनिषद |
आगमसार |
आत्मचिंतन भाग १ - प. पू. अण्णा घाणेकर |
आत्मचिंतन भाग २ - प. पू. अण्णा घाणेकर |
आत्मविद्या |
ऋग्वेद - एक शोधयात्रा |
एकनाथी भागवत - अध्यात्ममार्ग व वाङ्मयीन रसास्वाद. |
कर्म बंधन |
कल्याणी विशेषांक 1992 - पदार्पण |
कल्याणी विशेषांक 1993 - दासनवमी |
कल्याणी विशेषांक 1994 - श्री विवेकानंद अंक. |
कल्याणी विशेषांक 1995 - संत श्री ज्ञानेश्वर अंक. |
कल्याणी विशेषांक 1996 - संत श्री तुकाराम अंक. |
कल्याणी विशेषांक 1997 - संत श्री एकनाथ अंक. |
कल्याणी विशेषांक 1998 - संत श्री नामदेव अंक. |
कल्याणी विशेषांक 1999 - संत श्री ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर अंक. |
कल्याणी विशेषांक 2000 - संत श्री स्वरूपानंद (पावस) अंक. |
कल्याणी विशेषांक 2001 - गुरुदेव रानडे अंक. |
कल्याणी विशेषांक 2002 - संत श्री गुलाबराव महाराज अंक. |
कल्याणी विशेषांक 2003 - संत श्री प्रज्ञानानंद सरस्वती अंक. |
कल्याणी विशेषांक 2004 - संत श्री टेंबेस्वामी अंक. |
कल्याणी विशेषांक 2005 - संत श्री आर्वीकर महाराज अंक. |
कल्याणी विशेषांक 2006 - संत श्री श्रीधरस्वामी अंक. |
कल्याणी विशेषांक 2007 - संत श्री चिन्मयानंद स्वामी अंक. |
कल्याणी विशेषांक 2008 - संत श्री समर्थ रामदास अंक. |
कल्याणी विशेषांक 2009 - भगवद् पूज्यपाद आद्य शंकराचार्य |
खरा ब्राह्मण |
गरुडांच्या सहवासात |
गीता पद्यमुक्ताहार |
गीतारहस्य - बाळ गंगाधर टिळक - भाग १ ला |
गीतारहस्य - बाळ गंगाधर टिळक - भाग २ रा |
गीतारहस्य - बाळ गंगाधर टिळक - भाग ३ रा |
गीतारहस्य - बाळ गंगाधर टिळक - भाग ४ था |
गीतार्थ - बाळ गंगाधर टिळक - भाग १ ला |
गीतार्थ - बाळ गंगाधर टिळक - भाग २ रा |
चिमड संप्रदाय |
छत्रपति शिवाजी कालीन इतिहास व चरित्र |
जीवितविद्या - भाग १ ला (जीवितरहस्य) |
जीवितविद्या - भाग २ रा (जीवनसंग्राम) |
जीवितविद्या - भाग ३ रा (जीवितसुख) |
जोनथन लिविंग्स्टन् सीगल मराठी अनुवाद |
ज्ञानदेव चरित्र |
ज्ञानेश्वरीतील मंगलाचरणे |
तुलसीदास चरित्र - डॉ. श्री. कमलताई वैद्य |
दासबोधातील तत्त्वज्ञान |
नाडी ग्रंथ भविष्य |
नामयोगी - श्री. गोंदवलेकर महाराजांचे ललित चरित्र. |
नारद भक्ति सूत्रें - पांगारकर |
नारायणीय शिष्यप्रबोध अथवा भारतीय आत्मविद्या |
परमार्थ प्रश्नोत्तरी |
'पुरुषसूक्त' - purushasukta explained in Marathi |
प्रणवोपासना |
प्रश्नोपनिषद - शांकरभाष्यासहित - Prashnopanishad (in Marathi) |
भक्त-योग्याची आनंदसाधना |
भगवान् श्रीकृष्ण भाग १ ला |
भगवान् श्रीकृष्ण भाग २ रा |
भगवान् श्रीकृष्ण भाग ३ रा |
भगवान् श्रीकृष्ण भाग ४ था |
मनुस्मृति-मराठी-भाष्य |
मनुस्मृति-मराठी-भाष्य - स्वामी वरदानंदभारती |
मनुस्मृति-मराठी-भाष्य-भूमिका - स्वामी वरदानंदभारती |
महाभारत - पर्व ०१ ले - आदिपर्व - भाग १ ला अध्याय १ ते ६४ |
महाभारत - पर्व ०१ ले - आदिपर्व - भाग २ रा अध्याय ६५ ते १६४ |
महाभारत - पर्व ०१ ले - आदिपर्व - भाग ३ रा अध्याय १६५ ते २३४ |
महाभारत - पर्व ०२ रे - सभा पर्व |
महाभारत - पर्व ०३ रे - वनपर्व - भाग १ ला |
महाभारत - पर्व ०३ रे - वनपर्व - भाग २ रा |
महाभारत - पर्व ०३ रे - वनपर्व - भाग ३ रा |
महाभारत - पर्व ०४ थे - विराटपर्व |
महाभारत - पर्व ०५ वे - उद्योग पर्व - भाग २ रा |
महाभारत - पर्व ०५ वे - उद्योग पर्व - भाग १ ला |
महाभारत - पर्व ०६ वे - भीष्म पर्व - भाग १ ला |
महाभारत - पर्व ०६ वे - भीष्म पर्व - भाग २ रा |
महाभारत - पर्व ०७ वे - द्रोण पर्व - भाग १ ला |
महाभारत - पर्व ०७ वे - द्रोण पर्व - भाग २ रा |
महाभारत - पर्व ०८ वे - कर्ण पर्व |
महाभारत - पर्व ०९ वे - शल्य पर्व |
महाभारत - पर्व १० वे - सौप्तिकपर्व |
महाभारत - पर्व ११ वे - स्त्रीपर्व |
महाभारत - पर्व १२ वे - शान्तिपर्व - भाग ३ रा |
महाभारत - पर्व १२ वे - शान्तिपर्व - भाग ४ था |
महाभारत - पर्व १२ वे - शान्तिपर्व - भाग १ ला |
महाभारत - पर्व १२ वे - शान्तिपर्व - भाग २ रा |
महाभारत - पर्व १३ वे अनुशासन पर्व |
महाभारत - पर्व १४ वे - आश्वमेधाधिक पर्व |
महाभारत - पर्व १५ ते १८ - आश्रमवासिकम् मौसल, महाप्रस्थानिक व स्वर्गारोहण |
महाभारत उपसंहार भाग १ |
महाभारत उपसंहार भाग २ |
महाभारत उपसंहार भाग ३ |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग ०१ ला - टीका, आक्षेप, संस्कृती इ. |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग ०२ रा - राज्यसंस्था, नियंत्रणे व अधःपात |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग ०३ रा - राजा धृतराष्ट्र |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग ०४ था - दुर्योधन, दुःशासन व शकुनि |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग ०५ वा - महारथी कर्ण |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग ०६ वा - राजर्षि भीष्म |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग ०७ वा - महात्मा विदुर |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग ०८ वा - महासती गांधारी |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग ०९ वा - धर्मराज युधिष्ठीर |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग १० वा - राजमाता कुंती |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग ११ वा - महाराणी द्रौपदी |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग १२ वा - महापराक्रमी भीम |
महाभारतावरील व्याख्याने - भाग १३ वा - नरोत्तम पार्थ |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - अयोध्याकाण्ड (मराठी) - खण्ड १ |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - अयोध्याकाण्ड (मराठी) - खण्ड २ |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - अयोध्याकाण्ड (मराठी) - खण्ड 3 |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - अयोध्याकाण्ड (मराठी) - खण्ड ४ |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - अरण्यकाण्ड (मराठी) |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - उत्तरकाण्ड (मराठी) - खण्ड १ ला |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - उत्तरकाण्ड (मराठी) - खण्ड २ रा |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - किष्किंधाकाण्ड (मराठी) |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - बालकाण्ड (मराठी) - खण्ड १ ला |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - बालकाण्ड (मराठी) - खण्ड २ रा |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - बालकाण्ड (मराठी) - खण्ड ३ रा |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - बालकाण्ड (मराठी) - खण्ड ४ था |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - बालकाण्ड (मराठी) - खण्ड ५ वा |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - बालकाण्ड (मराठी) - खण्ड ६ वा |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - लंकाकाण्ड (मराठी) - खण्ड १ ला |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - लंकाकाण्ड (मराठी) - खण्ड २ रा |
मानस गूढार्थ चंद्रिका - सुंदरकाण्ड (मराठी) |
योगप्रभाव - खण्ड १ ला - श्री गुलाबराव महाराज |
योगप्रभाव - खण्ड २ रा - श्री गुलाबराव महाराज |
योगीश्वर याज्ञवल्क्य - चरित्र |
रुद्रार्थ दीपिका |
लक्ष्मी कशासाठी हवी ? |
वाचणं किती मजेचं |
विज्ञान आणि अंधश्रद्धानिर्मूलन |
विज्ञान आणि चमत्कार [ भाग १ ला ] |
विज्ञान आणि चमत्कार [ भाग २ रा ] |
विज्ञान आणि बुद्धिवाद |
विद्यारण्य व ज्ञानेश्वर यांच्या वेदांतावरील मतांचे तात्पर्य |
वेदांतविचार |
वेदान्तसार अभंग रामायण - प. पू. प्रज्ञानानंद सरस्वती |
शंकराचार्यकृत शतश्लोकी |
शांकरभाष्य - ईशावास्य उपनिषद |
शांकरभाष्य - ऐतरेय उपनिषद |
शांकरभाष्य - मुंडकोपनिषद |
शांकरभाष्य - तैत्तिरीय उपनिषद |
श्री तुकाराम महाराजकृत - मंत्रगीता |
श्री दासराम महाराजांचा वचन संग्रह |
श्री शुक ताल दर्शन |
श्रीएकनाथ महाराजांचे संक्षिप्त चरित्र |
श्रीज्ञानेश्वरमहाराजकृत - अमृतानुभव - भाग १ ला |
श्रीज्ञानेश्वरमहाराजकृत - अमृतानुभव - भाग २ रा |
श्रीज्ञानेश्वरी - गूढार्थ दीपिका - अध्याय १ ते ६ |
श्रीज्ञानेश्वरी - गूढार्थ दीपिका - अध्याय ७ ते १० |
श्रीज्ञानेश्वरी - गूढार्थदीपिका - अध्याय ११ ते १३ |
श्रीज्ञानेश्वरी - गूढार्थदीपिका - अध्याय १४ ते १७ |
श्रीज्ञानेश्वरी - गूढार्थदीपिका - अध्याय १८ |
श्रीनारद भक्तिसूत्रे |
श्रीमत् ग्रंथराज दासबोधाची - श्रीसंकेत कुबडी |
श्रीमद् दासबोध - गद्यरूपांतरासहित - दशक १ ते ८ |
श्रीमद् दासबोध - गद्यरूपांतरासहित - दशक ९ ते २० |
श्रीमद् भगवद्गीता - निवडक श्लोकांवरील लेख |
श्रीमद् भगवद्गीतार्थ रहस्यदीपिका - भाग १ ला |
श्रीमद् भगवद्गीतार्थ रहस्यदीपिका - भाग २ रा |
श्रीमान् मध्वाचार्य व त्यांचे तत्त्वज्ञान |
श्रीरामचरितमानस - मराठी समवृत्त समश्लोकी संहिता. |
श्रीशंकराचार्यकृत - आत्मानात्मविवेक - डॉ के वा आपटे |
श्रीशंकराचार्यकृत - तत्त्वोपदेश - डॉ के वा आपटे |
श्रीशंकराचार्यकृत - शतश्लोकी - डॉ के वा आपटे |
श्रीशंकराचार्यकृत तत्त्वोपदेश - डॉ के वा आपटे |
श्रीसद्गुरु ब्रह्मचैतन्य महाराज गोंदवलेकर यांचे संक्षिप्त चरित्र |
श्रीसमर्थहृदय - श्री शंकर श्रीकृष्ण देव |
श्रीसमर्थावतार - श्री शंकर श्रीकृष्ण देव |
श्रीसूक्त - मराठी अनुवाद |
षट्चक्र दर्शन व भेदन |
सत्संगति दुर्लभ संसारा - डॉ. श्री. कमलताई वैद्य |
साधुसंतांचा देवायान पंथ |
स्वस्थ आरोग्यासाठी हस्त मुद्रा - |
स्वानंद - डॉ. रा. अ. पाठक |
स्वामी प्रज्ञानानंद सरस्वती - डॉ. श्री. कमलताई वैद्य |
हरिपाठ भाष्य प्रकाश - प. पू. अण्णा घाणेकर |
हरिपाठ संकीर्तन |
03 November 2014
परमार्थिक ग्रंथ संग्रह
10 November 2011
श्रीमन्महाभारत - शांतिपर्व
"महाभारत" भारतवर्षातील सनातन वैदिक संस्कृतीचा एक महान ग्रंथ आहे. हा ग्रंथ म्हणजे अमूल्य रत्नांचे भांडार आहे. यात उपनिषदांचे संपूर्ण सार आले आहे. यात गूढार्थमय ज्ञान विज्ञान आहे, हा धर्मग्रंथ आहेच आणि त्या अनुषंगानुसार यात राजनितिचे दर्शन, कर्मयोग सिद्धांत, भक्तिशास्त्र, अध्यात्मशास्त्र - थोडक्यात याला सर्वशास्त्रसंग्रह म्हणता येईल एवढी याची व्याप्ती आहे.
या ग्रंथात एकूण १८ विभाग आहेत ज्याला पर्व ही संज्ञा दिली आहे. प्रत्येक पर्वात आणखी काही उपपर्वे आहेत. यातील १२ वे पर्व आहे शांतिपर्व. यात तीन उपपर्वे येतात. त्यातील अंतिम पर्व आहे ’मोक्षधर्मपर्व’. या पर्वात १७४ ते ३६५ असे एकूण १९२ अध्याय आलेले आहेत. यात चार पुरुषार्थ, अध्यात्म, नीति, आचार, मानवी जीवनाचे स्वरूप व त्याचे अंतिम उद्दिष्ट, सृष्टी उत्पत्ति व तिचा लय, मानवी देह व त्या अंतर्गत बुद्धि, मन, चित्त याचे स्वरूप, जीव, आत्मा, परमात्मा यांचे स्वरूप, ज्ञान, योग इत्यादिंचे सखोल विवेचन - हे सर्व आले आहे. थोडक्यत मोक्षधर्मपर्व हा ज्ञानकोश आहे.
सामान्य माणसाला महाभारत या ग्रंथाची व्याप्ती, मुख्य म्हणजे ग्रंथाचा आकार बघूनच भिती वाटते. या ग्रंथाचा संग्रह करणार्यांमध्येही याचे वाचन सहसा होत नाही. मी मोक्षपर्व एकदा वाचल्यावर वाटले की याचे सतत वाचन आवश्यक आहे. पण वाचन म्हणावे तसे घडत नाही. महाभारतातीला या भागाचे Audio Book तयार करावे वा कोणा चांगल्या आवाज असलेल्या व्यक्तिकडून वाचन करून घ्यावे अशी बरेच दिवसांपासून इच्छा होती. या संदर्भात अनेकांशी चर्चा केली पण योग्य व्यक्ति सापडेना. एकदा माझे परम आदरणीय स्नेही श्री. दिलिप आपटे यांच्याशी या संदर्भात बोलल्यावर त्यांनाही ही कल्पना आवडली. आणि नुसते ’कल्पना छान आहे’ एवढे म्हणून ते थांबले नाहीत. त्यांनी लगेच कामाला सुरुवात केली. जवळपास अर्धे वाचन झाले आहे आणि त्या सर्व लिंक्स् खाली दिलेल्या आहेत. मला व्यक्तिगत लाभ होतोच आहे. या श्राव्य फिती iPod, mobile वर जोडून केव्हांही ऐकता येत असल्यामुळे वरवरचेवर याचा लाभ घेता येतोय. इच्छुकांनीही याचा लाभ घ्यावा.
भाग पहिला - अध्याय १७४ ते २००
भाग दुसरा - अध्याय २०१ ते २४०
भाग तिसरा - अध्याय २४१ ते २८०
भाग चवथा - अध्याय २८१ ते ३२०
भाग पाचवा - अध्याय ३२१ ते ३६५
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05 October 2011
श्रीज्ञानेश्वरांचा हरिपाठ -
श्रीज्ञानेश्वरांचा हरिपाठ म्हणजे वारकर्यांचे जीवन. यात अवघे २७ अभंग आहेत. अर्थदृष्ट्या त्यांची व्याप्ती पाहता सामान्य जनच काय पण त्यावर प्रवचन, निरूपण करणारेही हरखून जातात. कोणीकोणी तर एकेका अभंगावर आठवडाभरही बोलू शकतात. अशीच काही निरूपणे श्री. अण्णा घाणेकर यांची काही निरूपणे सांगली येथे १५ ऑगस्ट ते २१ ऑगस्ट या दरम्यान सांगली येथे झाली होती. सगळ्याच अभंगांवर काही निरूपणे होऊ शकली नाहीत. पण या काळात त्यांनी पहिल्या ६-७ अभंगांची चर्चा केली. १२ निरूपणाच्या श्राव्य फिती आणि शेवटची (१३ वी-काल्याची) श्री. अण्णांच्या कीर्तनाची फीत आहे. साधकांना आवडतीलच असा विश्वास आहे. पहा कशी वाटतात आणि आपले मत [feedback] कळवा.
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निरूपण १
निरूपण २
निरूपण ३
निरूपण ४
निरूपण ५
निरूपण ६
निरूपण ७
निरूपण ८
निरूपण ९
निरूपण १०
निरूपण ११
निरूपण १२
निरूपण १३-कीर्तन
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Pravachan
01 August 2011
श्रीमद् भागवतमहापुराणम् - मराठी
श्रीमद् भागवतमहापुराणम् - मराठी
स्कंध पहिला
स्कंध दुसरा
स्कंध तिसरा
स्कंध चवथा
स्कंध पाचवा
स्कंध सहावा
स्कंध सातवा
स्कंध आठवा
स्कंध नववा
स्कंध दहावा(पूर्वार्ध)
स्कंध दहावा(उत्तरार्ध)
स्कंध अकरावा
स्कंध बारावा
भक्तिसाहित्यात श्रीमद् भागवत सर्वात् उच्च श्रेणीचा ग्रंथ आहे. तसेच सर्व पुराणामध्ये सर्वात जास्त अध्ययन होत असेल तर श्रीमद् भागवताचेच असे म्हणायला हरकत नसावी. याचे कारण काय असावे ? महाभारतात, विशेषतः महाभारताचा खिलभाग असलेल्या हरिवंशपुराणात आलेले कृष्ण चरित्र पाहता भागवतात कृष्णचरित्राबद्दल अधिक माहिती आहे असे नव्हे. पण दोन ग्रंथातील चरित्र शैलीन महद् अंतर आहे.. महाभारतात ऐतिहासिक वर्णन आहे तर भागवतात जगन्नियंत्या परमेश्वराच्या लीलांचे भावमय, रसाळ दर्शन आहे.
श्रीमद् भागवत ग्रंथ तसा आकार-विस्ताराने लहान नाही. कथा सप्ताह करणारे सहसा एका सप्ताहात सर्व भागवत कथन करू शकत नाहीत. संस्कृत संहितेचे अध्ययनही सोपे नाही. त्याच्या मराठी अनुवादाचे संपूर्णपणे वाचन करणेही कठीण आहे. यात ३३५ अध्याय असून ते १२ स्कंधात विभागलेले आहेत. स्कंध १ ते ९ यांना कृष्णकथेची प्रस्तावना मानली लाते. कृष्णकथा मुख्यतः १० व्या स्कंधात असून त्यात ९० अध्याय आहेत. ११ व्या स्कंधात कृष्णाचे परलोक गमनापूर्वी त्याने उद्धवास सांगितलेली उद्धव गीता आली आणि १२ स्कंध उपसंहाराचा.
सध्या ग्रंथ वाचनापेक्षा ग्रंथ श्रवण करणे (Audio Books) त्याच्या सुलभतेमुळे लोकप्रिय झाले आहे. मराठी ग्रंथांचे Audio Books तसे अजून प्रचलित नाहीत. पण या प्रणालीचा वापर करून कोणत्याही ग्रंथाचा हवा तेव्हढा भाग हवा तेव्हां ऐकणे आता iPod, mobile वगैरे साधनांमुळे फारच सोपे झाले आहे. गीताप्रेसच्या ’श्रीमद्भागवतमहापुराणम् - केवळ मराठी अनुवाद’ याचे श्राव्य संस्करण प्रस्तुत करीत आहोत.
श्रीमद् भागवत ग्रंथ तसा आकार-विस्ताराने लहान नाही. कथा सप्ताह करणारे सहसा एका सप्ताहात सर्व भागवत कथन करू शकत नाहीत. संस्कृत संहितेचे अध्ययनही सोपे नाही. त्याच्या मराठी अनुवादाचे संपूर्णपणे वाचन करणेही कठीण आहे. यात ३३५ अध्याय असून ते १२ स्कंधात विभागलेले आहेत. स्कंध १ ते ९ यांना कृष्णकथेची प्रस्तावना मानली लाते. कृष्णकथा मुख्यतः १० व्या स्कंधात असून त्यात ९० अध्याय आहेत. ११ व्या स्कंधात कृष्णाचे परलोक गमनापूर्वी त्याने उद्धवास सांगितलेली उद्धव गीता आली आणि १२ स्कंध उपसंहाराचा.
सध्या ग्रंथ वाचनापेक्षा ग्रंथ श्रवण करणे (Audio Books) त्याच्या सुलभतेमुळे लोकप्रिय झाले आहे. मराठी ग्रंथांचे Audio Books तसे अजून प्रचलित नाहीत. पण या प्रणालीचा वापर करून कोणत्याही ग्रंथाचा हवा तेव्हढा भाग हवा तेव्हां ऐकणे आता iPod, mobile वगैरे साधनांमुळे फारच सोपे झाले आहे. गीताप्रेसच्या ’श्रीमद्भागवतमहापुराणम् - केवळ मराठी अनुवाद’ याचे श्राव्य संस्करण प्रस्तुत करीत आहोत.
श्राव्य सादरीकरण सौ. ज्योत्स्ना तानवडे यांच्या सौजन्याने -
स्कंध पहिला
स्कंध दुसरा
स्कंध तिसरा
स्कंध चवथा
स्कंध पाचवा
स्कंध सहावा
स्कंध सातवा
स्कंध आठवा
स्कंध नववा
स्कंध दहावा(पूर्वार्ध)
स्कंध दहावा(उत्तरार्ध)
स्कंध अकरावा
स्कंध बारावा
28 November 2010
गीतारहस्य - ले. बाळ गंगाधर टिळक
"सांसारिक कर्मे गौण किंवा त्याज्य ठरवून ब्रह्मज्ञान, भक्ति वैगैरे नुसत्या निवृत्तिपर मोक्षमार्गाचेच गीतेत निरूपण केले आहे, हे मत जरी आम्हांस मान्य नाही, तरी मोक्षप्राप्तीच्या मार्गाचे भगवद्गीतेत मुदलीच विवेचन नाही, असेही आमचे म्हणणे नाही. किंबहुना प्रत्येक मनुष्याने शुद्ध परमेश्वरस्वरूपाने ज्ञान संपादन करून तद्द्वारा आपली बुद्धि होईल तितकी निर्मल व प्रवित्र करणे, हे गीताशास्त्राप्रमाणे त्याचे जगांतील पहिले कर्तव्य असे आम्हींही या ग्रंथात स्पष्ट दाखविले आहे. परंतु हा गीतेंतील मुख्य मुद्दा नव्हे. युद्ध करणे हा क्षत्रियाचा धर्म असला तरी उलटपक्षी कुलक्षयादि घोर पातके घडून जे युद्ध मोक्षप्राप्तिरूप आत्मकल्याणाचा नाश करणार तें का करूं नये, अशा कर्तव्य मोहांत युद्धारंभी अर्जुन पडला होता. म्हणून तो मोह घालविण्यासाठी शुद्ध वेदांत शास्त्राधारें कर्माकर्माचे व त्याबरोबरच मोक्षोपायाचेंही पूर्ण् विवेचन करून, आणि कर्में कधीच सुटत नाहींत व सोडूं नयेत असें ठरवून, ज्या युक्तीने कर्में केली म्हणजे कोणतेच पाप न लागतां अखेर त्यानेंच मोक्षही मिळतो, त्या युक्तीचे म्हणजे ज्ञानमूलक व भक्तिप्रधान कर्मयोगाचेंच गीतेंत प्रतिपादन आहे, असा आमचा अभिप्राय आहे. कर्माकर्माच्या किंवा धर्माधर्माच्या या विवेचनासच आधुनिक केवळ आधिभौतिक पंडित नीतिशास्त्र असे म्हणतात. हे विवेचन गीतेंत कोणत्या प्रकारें केले आहे हे सामान्य पद्धतीप्रमाणें गीतेवर श्लोकानुक्रमानें टीका करून दाखवितां आलें नसते असे नाही. पण वेदांत, मीमांसा, सांख्य, कर्मविपाक किंवा भक्ति, वगैरे शास्त्रांतील ज्या अनेक वादांच्या व प्रमेयांच्या आधारें कर्मयोगाचें गीतेंत प्रतिपादन केलेले आहे, व ज्याचा उल्लेख कधी कधी फारच संक्षिप्तरीत्या केलेला असतो, त्या शास्त्रीय सिद्धांताची आगाऊ माहिती असल्याखेरीज गीतेंतील विवेचनाचे पूर्ण मर्म सहसा लक्षांत भरत नाही. यासाठीं गीतेंत जे जे विषय किंवा सिद्धांत आले आहेत त्यांचे शास्त्रीयरीत्या प्रकरणशः विभाग पाडून, त्यातील प्रमुख प्रमुख युक्तिवादांसह गीतारहस्यांत त्याचे प्रथम थोडक्यांत निरूपण केले आहे; व त्यांतच प्रस्तुत कालच्या चौकस पद्धतीप्रमाणे गीतेच्या प्रमुख सिद्धांताची इतर धर्मांतील व तत्त्वज्ञानांतील सिद्धांतांशी प्रसंगानुसार संक्षेपाने तुलना करून दाखविली आहे. या पुस्तकांत प्रथम दिलेला गीतारहस्य हा निबंध अशा रीतीनें कर्मयोगावर एक लहानसा पण स्वतंत्र ग्रंथ आहे."
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भाग १ ला
भाग २ रा
भाग ३ रा
भाग ४ था
गीतार्थ - अध्याय १ ते ७
गीतार्थ - अध्याय ८ ते १८
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24 November 2010
साधक संजीवनी - परमश्रद्धेय स्वामी रामसुखदास कृत भगवद्गीतेवरील विस्तृत टीका -
साधक संजीवनी -
परमश्रद्धेय स्वामी रामसुखदास कृत भगवद्गीतेवरील विस्तृत टीका -
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अध्याय १ ला
अध्याय २ रा
अध्याय ३ रा
अध्याय ४ था
अध्याय ५ वा
अध्याय ६ वा
अध्याय ७ वा
अध्याय ८ वा
अध्याय ९ वा
अध्याय १० वा
अध्याय ११ वा
अध्याय १२ वा
अध्याय १३ वा
अध्याय १४ वा
अध्याय १५ वा
अध्याय १६ वा
अध्याय १७ वा
अध्याय १८ वा
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परमश्रद्धेय स्वामी रामसुखदास कृत भगवद्गीतेवरील विस्तृत टीका -
श्रीमद् भगवद्गीता एक विलक्षण ग्रंथ आहे. त्याचे वैलक्षण म्हणजे परब्रह्म परमात्म्याने अवतार घेऊन स्वमुखाने मानवास मोक्षस्थिती अनुभविण्याचा उपदेश केला आहे. मोक्षप्राप्तीचे मुख्यतः तीन राजमार्ग म्हटले आहेत त्यास प्रस्थानत्रयी म्हणतात. गीता, उपनिषद् आणि ब्रह्मसूत्र हे तीन प्रस्थान. असे म्हणतात की उपनिषदांचे श्रवण करावे, ब्रह्मसूत्रांचे मनन करावे आणि भगवद्गीतेचे निदिध्यासन करीत ब्रह्माचा अनुभव घ्यावा.
भगवद्गीतेवर अनेकानेक भाष्ये आहेत. "साधक संजीवनी" ही भगवद्गीतेवरील परमश्रद्धेय स्वामी रामसुखदास यांची टीका. स्वामी म्हणतात - भगवद्गीता असा विलक्षण ग्रंथ आहे की ज्याचा कोणाला पार लागू शकला नाही, पार लागू शकत नाही आणि पार लागू शकतच नाही. याचे नित्य अध्ययन मनन केल्यास नित्य नवीन भाव प्रकट होत राहतात. गीतेत जितका भाव भरला आहे, तितका बुद्धीत येत नाही. जितका बुद्धीत येतो, तितका मनात येत नाही, जितका मनात येतो तितका सांगण्यात येत नाही. गीता असीम आहे परंतु तिची टीका सीमितच असते. स्वामी पुढे म्हणतात मला आधी निर्गुणाचे प्राधान्य वाटायचे, पण त्यात सर्वच बाबींचे योग्य समाधान होत नाही. परंतु सगुण प्रधान मानल्याने कोणताही संशय शिल्लक राहात नाही. समग्र सगुणातच आहे, निर्गुणात नाही. पाहूया तर असा अनुभव घेतलेले श्रेष्ठ संत स्वामी रामसुखदास आपल्या टीकेत काय म्हणतात.
स्वामींचा आग्रह आहे साधकांनी स्वतःचा कोणताही आग्रह न ठेवता ही टीका वाचावी आणि यावर सखोल विचार करावा म्हणजे वास्तविक तत्त्व त्यांना समजून येईल आणि जी गोष्ट टीकेत आली नसेल, तीही समजून येईल.
भगवद्गीतेवर अनेकानेक भाष्ये आहेत. "साधक संजीवनी" ही भगवद्गीतेवरील परमश्रद्धेय स्वामी रामसुखदास यांची टीका. स्वामी म्हणतात - भगवद्गीता असा विलक्षण ग्रंथ आहे की ज्याचा कोणाला पार लागू शकला नाही, पार लागू शकत नाही आणि पार लागू शकतच नाही. याचे नित्य अध्ययन मनन केल्यास नित्य नवीन भाव प्रकट होत राहतात. गीतेत जितका भाव भरला आहे, तितका बुद्धीत येत नाही. जितका बुद्धीत येतो, तितका मनात येत नाही, जितका मनात येतो तितका सांगण्यात येत नाही. गीता असीम आहे परंतु तिची टीका सीमितच असते. स्वामी पुढे म्हणतात मला आधी निर्गुणाचे प्राधान्य वाटायचे, पण त्यात सर्वच बाबींचे योग्य समाधान होत नाही. परंतु सगुण प्रधान मानल्याने कोणताही संशय शिल्लक राहात नाही. समग्र सगुणातच आहे, निर्गुणात नाही. पाहूया तर असा अनुभव घेतलेले श्रेष्ठ संत स्वामी रामसुखदास आपल्या टीकेत काय म्हणतात.
स्वामींचा आग्रह आहे साधकांनी स्वतःचा कोणताही आग्रह न ठेवता ही टीका वाचावी आणि यावर सखोल विचार करावा म्हणजे वास्तविक तत्त्व त्यांना समजून येईल आणि जी गोष्ट टीकेत आली नसेल, तीही समजून येईल.
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